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कद / केशव

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तुम्हारा कद
क्यों छोटा होता जा रहा है
दोस्त
यह अचम्भे की बात है

आदमी का कद
या तो बढ़ता है
या ठहर जाता है अचानक बढ़ते-बढ़ते।

मैने तो सुना है
हमेशा कद की बात करते
तुम्हें

कैसे आदमी
अपने कद से निकलकर
हर चीज़ को
अपने लिये बना लेता है
और कैसे
हर खाई को
अपने कद की परछाईं से छा लेता है

यही तो
यही तो कहा है तुमने
मुझसे
और उन सबसे भी
जिन्हें तुम
अपने कद की छाँव में
धूप, बारिश से
बचाने का प्रपँच रचते हो

शायद मेरी आँखो का धोखा है यह

कद कभी छोटा नहीं होता
दोस्त


हाँ
कद के अंदर बैठा आदमी ही
पड़ जाता है छोटा

कद की इस दौड़ में
अपने बौनेपन को आदमी
फूल-मालाओं से ढाँप लेता है
या तालियों की गड़गड़ाहट से
पोंछ लेता है।