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दिन-तीन कविताएँ / केशव

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दिन: तीन कविताएं

1
अख़बारों में
ढूँढता रहता है
दिन
अपनी सार्थकता

इस तरह
बढते रहने का
उसे नहीं कोई दुख

गली-गली
घूम रहा है
रद्दीवाला

उसे नहीं मालूम
कि इधर
लिफाफों की माँग
कितनी बढ़ गई है

2
दिन
पलक झपकते
गुज़र गया
     किसी मेल गाड़ी की की तरह

और हम
खड़े
     रहे
अपने तम्बू
कन्धों पर
     लिये

3
रात ने
खोल दिये
पंख
दिन
दुबक गया
   उनके नीचे

उजाले के लिए
उगती
     इच्छा को
कोई
अँधेरे से
      कैसे सींचे