भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी-4 / श्रीप्रकाश मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:34, 3 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रकाश मिश्र |संग्रह= }} <Poem> जब मैं पानी की ता...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब मैं पानी की ताक़त पर बात कर रहा था
मुझे अचानक याद आया चट्टान का सामर्थ्य

उसे मैंने पूर्वी घाट पर देखा था
हज़ारों मील के जल में घिरा
अकेला
तमाम चट्टानों से सैकड़ों मील दूर
निरन्तर सागर के उद्वेलन को चौतरफ़ा पीछे ढकेलता
अनादि काल से

अकिंचन में अडिग सामर्थ्य
के मुक़ाबिले अनन्त पानी में
बस इतना सामर्थ्य था
कि उसे चिकना कर लौट जाए।