भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहा मैंने / मीर तक़ी 'मीर'
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 3 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem>कहा मैंने क...)
कहा मैंने कितना है गुल का सबात
कली ने यह सुनकर तब्बसुम किया
जिगर ही में एक क़तरा खूं है सरकश
पलक तक गया तो तलातुम किया
किसू वक्त पाते नहीं घर उसे
बहुत 'मीर' ने आप को गम किया