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ऋतु परिवर्तन / केशव

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पोर-पोर
बसी
        गन्ध
               अनजान-सी

भर गयी
पंछियों की कतार से
      अरगनी
                सूने
                       आसमान की

हवा के झूले पर बैठ
आँगन में उतरी है
ऋतु
      फिर
           मेहमान सी