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दरवाज़ा / केशव

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कई दिन से उसे
धूप के
दहलीज़ तक उतर आने का
था इंतज़ार

उम्मीद थी
दलहीज़ लाँघ
कमरे में भर जायेगी
धूप

विश्वास था
उसके अन्दर भरकर
चुग लेगी
अन्धकार को क़तरा-क़तरा

आख़िर हुआ ख़त्म
उसका इंतज़ार
धूप आकर
बिछ गयी दहलीज़ पर
अपनी तमाम—तमाम
सम्भावनाओं के साथ

पर सूख़ चुका था उसका धैर्य
धूप का कमरे में आने तक
न कर सकी इंतज़ार

कटोरी—भर धूप
ले आयी अन्दर
अपने लिए
और उन सबके लिए
जिन्हें थी उसकी ज़रूरत

उसे नहीं रहा याद
कि घर में
कटोरी से बड़े बर्तन
भी हैं मौजूद
और उससे भी बढ़कर
वह स्वयं

फिर दरवाज़ा कर लिया बन्द

धूप बड़ी देर तक
देती रही दस्तक

अब उसके सामने है
ख़ाली कटोरी
और बचा है
धूप का इंतज़ार

लेकिन दरवाज़ा
खुला रखने का विश्वास
उसे अभी पाना है
रिश्तों के इसी मूल तक
अभी उसे जाना है