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चारासाजों की अज़ीयत / परवीन शाकिर
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चारासाजों की अज़ीयत नहीं देखी जाती
तेरे बीमार की हालत नहीं देखी जाती
देने वाले की मशीय्यत पे है सब कुछ मौक़ूफ़
मांगने वाले की हाजत नहीं देखी जाती
दिल बहल जाता है लेकिन तेरे दीवानों की
शाम होती है तो वहशत नहीं देखी जाती
तमकनत से तुझे रुख़सत तो किया है लेकिन
हमसे उन आँखों की हसरत नहीं देखी जाती
कौन उतरा है आफ़ाक़ की पिनाहाई में
आईनेख़ाने की हैरत नहीं देखी जाती