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निकट और दूर / केशव
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हम जब भी होंगे मौन
हमारे बीच नहीं होगा कोई
सिवा गहरे सामीप्य की
बेसुध गन्ध के
अन्यथा शब्द हिलते रहेंगे
रुमालों की तरह
विदा होते रहेंगे मौसम
और हम ख़ुद को ‘ बार-बार
गाड़ियाँ छूटने की
प्रतीक्षा करते हुए पायेंगे ।