मुहब्बत
क़ौस ए कुज़ह की तरह
क़ायनात के एक किनारे से
दूसरे किनारे तक तनी हुई है
और इसके दोनों सिरे
दर्द के अथह समुन्दर में डुबे हुए हैं
मुहब्बत
क़ौस ए कुज़ह की तरह
क़ायनात के एक किनारे से
दूसरे किनारे तक तनी हुई है
और इसके दोनों सिरे
दर्द के अथह समुन्दर में डुबे हुए हैं