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मैं जो रास्ते पे चल पड़ी / मीना कुमारी

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मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मुझे मंदिरों ने दी निदा
मुझे मसजिदों ने दी सज़ा
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी

मेरी सांस भी रुकती नहीं
मेरे पाँव भी थमते नहीं
मेरी आह भी गिरती नहीं
मेरे हात जो बड़ते नहीं
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी

यह जो ज़ख़्म कि भरते नहीं
यही ग़म हैं जो मरते नहीं
इनसे मिली मुझको क़ज़ा
मुझे साहिलों ने दी सज़ा
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी

सभी की आँखें सुर्ख़ हैं
सभी के चेहरे ज़र्द हैं
क्यों नक्शे पा आएं नज़र
यह तो रास्ते की ग़र्द हैं
मेरा दर्द कुछ ऐसे बहा

मेरा दम ही कुछ ऐसे रुका
मैं कि रास्ते पे चल पड़ी