भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्द वही हो तो भी / राजेन्द्र राजन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:32, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र राजन }}<poem> चिराग़ की तरह पवित्र और जरू...)
चिराग़ की तरह पवित्र और जरूरी शब्दों को
अंधेरे घरों तक ले जाने के लिए
हम आततायियों से लड़ते रहे
थके-हारे होकर भी
और इस लड़त में
जब हमारी कामयाबी का रास्ता खुला
और वे शब्द
लोगों के घरों
और दिलो-दिमाग़ में जगह पा गये
तो आततायियों ने बदल दिया है अपना पैंतरा
अब वे हमारे ही शब्दों को
अपने दैत्याकार प्रचार-मुखों से
रोज - रोज
अपने पक्ष में दुहरा रहे हैं
मेरे देशवासियों ,
इसे समझो
शब्द वही हों तो भी
जरूरी नहीं कि अर्थ वही हों
फर्क करना सीखो
अपने भाइयों और आततायियों में
फर्क करना सीखो
उनके शब्द एक जैसे हों तो भी .
१९९५.