भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती की आह / तेज राम शर्मा

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तेज राम शर्मा |संग्रह=बंदनवार / तेज राम शर्मा}} [[Cate...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंजुरी से छलक न जाए जल
रेगिस्तानन में
प्यासी होगी धरती

राख में दबाकर रखता हूँ अंगारा
शीत में ठिठुर रही होगी धरती


पहाड़ से चुराता हूँ
एक शीतल साँस
छटपटा रही होगी धरती


छुपाता फिरता हूँ
सोंधी मिट्टी का एक टुकड़ा
चट्टान-सी कठोर
हो रही होगी धरती


बुहार कर रखता हूँ
तारों भरे आकाश का एक कोना
चाँदनी रात में पल भर
सुस्ताती होगी धरती

बचाता फिरता हूँ
बीज का एक दाना
शिशु सपने देखती होगी धरती।