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मैं अमर हो जाता / तेज राम शर्मा

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अंधकार के गर्भ से
आसमान को चीरते
सोने की कलम से
मेरे माथे पर उकेर दो
स्वर्णिम अक्षर

बर्फ़ के शिखर से
उडेल दो
स्वर्ण मुद्राओं की ढेरों थैलियाँ

आओ
समय की बेड़ियों के मीठे दर्द से
मुझे मुक्त करो

हरी भरी चरागाह में
मुझे उन्मुक्त मेमना बन जाने दो

मैं अमर हो जाता
यदि आकणठ पी सकता
किरण बिंध एक ओस कण को
मैं अमर हो जाता
यदि बादलों को आलिंगन करते
थक न जाता

मैं चुप हो जाता
यदि सुन सकता
पर्वत शिखर पर
किरणों की पदचाप।