Last modified on 4 फ़रवरी 2009, at 12:20

जीवन का मोल / तेज राम शर्मा

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तेज राम शर्मा |संग्रह=बंदनवार / तेज राम शर्मा}} [[Cate...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस निर्जन में भी
गंध की टोह लेतीं
मधुमक्खियाँ भिनभिना रही हैं
फूलों के गुच्छों पर

पत्तों के झुरमुटों बीच
एक किरण झांक कर
आँख मिचौनी खेलती है मेरे साथ

मेरे तलवों को
गुदगुदा कर
लहरों तले
छुप जाती है रेत

बहुत भोर में
देवदार की टहनियों बीच छुपी हिम कस्तूरिका
एक सुरीला-सा राग गाकर
जगा जाती है
कोई स्मृति
शहद की बूँद-सी
मुँह में घुल जाती है

यदि हवा में हो
पराग सी महक
किरण-सी चाहत भरी हो आँख
पोर-पोर गुदगुदाती हो लहर
भोर में पक्षी गाते हों भैरवी
शहद-सा स्वाद हो मुँह में
तो कौन नहीं चुकाएगा
जीने का मोल।