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ना-नुकर में तमाम सड़के हैं / जहीर कुरैशी

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ना-नुकर में तमाम सड़कें हैं
उस नज़र में तमाम सड़कें हैं

गाँव में तो गिनी चुनी दस थीं
इस शहर में तमाम सड़कें हैं

रोज अपराध करने वाले के
मूक डर में तमाम सड़कें हैं

वो गनहगार छूट जाएगा
न्याय-घर में तमाम सड़कें हैं

जो गरीबों की बात करता है
उसके स्वर में तमाम सड़कें हैं

शाम को मुम्बई ,सुबह दिल्ली
रात भर में तमाम सड़कें हैं