भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे शहर की बस / नवनीत शर्मा

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:27, 6 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवनीत शर्मा |संग्रह= }} Category:कविता <poem> यह बस तुम्‍...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
यह बस तुम्‍हारे शहर से आई है
ड्राइवर के माथे पर
पहुँचने की खुशी
थके हुए इंजन की आवाज
धूल से आंख मलते
खिड़कियों के शीशे
सबने यही कहा
दूर बहुत ही दूर है तुम्‍हारा शहर
यह बस देखती है
तुम्‍हारे शहर का सवेरा
मेरे गाँव की साँझ
सवाल पूछता है मन
क्‍या तुम्‍हारा शहर भी उदास होता है
जब कभी पहुँचती है
मेरे गाँव का सवेरा लेकर
तुम्‍हारे शहर की शाम में कोई बस
थकी-माँदी।