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विश्वास और अविश्वास के बीच / नोमान शौक़

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आदी हो चुके हैं ये शब्द

नेताओं की भाषा बोलने के

बदलते रहते हैं इनके अर्थ भी

बदलते युग के साथ

इनकी बदलती भाव भंगिमाओं से

तंग आ चुके हैं शब्दकोश


जो कुछ मैं लिख रहा हूं आज

न जाने क्या क्या अर्थ निकाले जाएं

कल इन्ही शब्दों से


तो क्या

मैं भरोसा नहीं कर सकता

अपने शब्दों पर भी।