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उत्तराधिकारी के नाम / दिविक रमेश

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न आ मेरे बच्चे

मेरे पीछे-पीछे

न जाने कितने उबाल हैं मेरेभीतर

कि सड़क पर पड़ा हर क़दम

छप जाता है ।


मेटने पड़ते हैं सभी

घबराकर

कि कहीं

अपनी दिशओं से मुक्त हो

मेरे स्वार्थों को भी कर्तव्य समझ

न चलने लगे तू

उन्हीं उन छपे

साँचे-से/ ढले पैरों पर ।