भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दृश्य उड़ते विमान से देखा / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:48, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण
दृश्य उड़ते विमान से देखा
बाढ़ को इत्मीमान से देखा
उसने सत्ता के अश्व पर चढ़
कर
जो भी देखा वो शान से देखा
मेरी आँखें चली गईं जबसे
मैंने दुनिया को कान से देखा
फ़ाइलों ने विकास का चेहरा
आँकड़ों की ज़ुबान से देखा
मैंने दिन भर की उसकी मेहनत को
रात भर की थकान से देखा
सेठ साहब ने झोंपड़ी का कद
अपने ऊँचे मकान से देखा
तीर होना तभी हुआ सार्थक
तीर ने जब कमान से देखा