भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबह / राजा खुगशाल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:53, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तीन औरतें नदी में

साथ-साथ नहा र्ही हैं


एक लड़की खेत में

मिट्टी के ढेले फोड़ रही है


एक आदमी बैलों के

नथुने कस रहा है


झुंड की घनी और

ऊँची घास में से

उग रहा है सूरज