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और पत्ते गिर रहे हैं इस तरह लगातार-2 / उदय प्रकाश
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यह भी अंत नहीं है
यह आरम्भ भी नहीं है
यहाँ से कोई ट्रेन बनकर नहीं चलती
कोई टर्मिनल नहीं है यहाँ
सुनो भाई अकबर!
सुनो भाई बिसनू!
सुनो भाई साधो!
यहाँ सिर्फ़ एक तेज़ सीटी बजती रहती है लगातार
बीच-बीच में सुनाई देता है कोई धमाका
और बजती रहती हैं लोहे की घंटियाँ
कुछ बत्तियाँ जलती-बुझती रहती हैं लाल और हरे रंग की
वर्षों से नियमित
किसी अदृश्य उद्देश्य के लिए लगातार
पैदल चलो भाई बिसनू!
पैदल चलो भाई अकबर!
पैदल चलो भाई साधो!!