भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सयाने हो गये हैं शब्द / केशव

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:03, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सयाने हो गये हैं शब्द
बेशक
पर इतने भी नहीं
कि हर रहस्य को
धर दें
अनंतकाल से प्रतीक्षारत हथेलियों पर
समूची प्रार्थनाओं की एवज में
एक ख़ुली किताब की तरह
एक सितारे की तरह
रोशन कर दें
तमाम-तमाम रातें
कि सूंघ सके हम
उस सत्य को
जो शब्दों की सड़क से होकर नहीं
ज़िंदगी की पगडंडी से होकर
बदल दे
शब्दों के आधे बंजर को भी
लहलाती फसल में।