भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किताब / मोहन राणा
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण
रुकते अटकते कभी
थक कर खो जाते अपनी ही उम्मीदों में
निराशा को पढ़ते हुए सुबह की डाक में
पूरी हो गई एक क़िताब
किसी अंत से शुरू होती
किसी आरंभ पर रुक जाती
पूरी हो गई एक क़िताब
आकाश गंगा में एक
बूंद पृथ्वी
भटकते अंधकार में
17.9.2004