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ग़रीबदास / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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गरीब दास
जिस सड़क पर रवाना है
उसे नहीं मालूम
यह सड़क कहाँ जाती है

आहिस्ता-आहिस्ता
ख़ुलती हुई पट्टियों के इस दौर में
उसे नहीं मालूम
उसकी आँखों पर कितनी पट्टियों का सिलसिला
अभी शेष है
फिलहाल
उसकी ही तरह
उसी सड़क पर चलता हुआ
लगभग
पूरा देश

चलते-चलते
ग़रीबदास उठता है गिरता है
गिड़ग़िड़ाता है
लगातार हाँके जाने पर
बौख़लाया हुआ ग़रीबदास
नहीं जानता
उसे क्या करना चाहिए
वह क्या कर जाता है
ले लोग जो ग़रीब दास को
इस मुकाम से उस मुकाम पर
हाँक रहे हैं
अपना-अपना फ़ायदा बराबर
आँक रहे हैं
कुल मिलाकर इस वक्त
ग़रीब दास बाकी धर्मों के ख़िलाफ़ धर्म है
मुल्क के ख़िलाफ़ सूबा है
सूबे के ख़िलाफ़ जात है
उसे नहीं मालूम
उस मुख़ाल्फ़त एक पीछे
किसका हाथ है