भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सभ्य / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:05, 8 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़ |संग्रह=संसार की धूप / प्र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे सो जाते हैं
आती रहती हैं
पड़ौसी कमरे से
सिसकियाँ

उठता रहता है
मुहल्ले में शोर
क्रंदन आर्तनाद

जलता रहता है
लगाई गई गई आग में
गुस्सैल गरीब का घर

होता रहता है
सामुहिक बलात्कार

शहर के जंगल से ग़ुज़र कर
अपनी पोशाक से
झाड़् कर धूल
वो सो जाते हैं

किंचित नहीं पिघलती
ज़िंदा जलते
आदमी की आँच से
उनके अंदर की बर्फ़
नहीं पड़ता कोई फ़र्क़

वे सो जाते हैं