स्पष्टीकरण / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
हजूर
पगार की दुक्की पर
सदा पड़ी रहती है
ज़रूरतों को दहली
इसीलिए हजूर
रोज़ नहीं पीता
पीता हूँ
पहली की पहली
हाँ हुजूर
रोज़ नहीं पीता
पहली की पहली पीता हूँ
और सच तो यह है हजूर
यही चंद घड़ियाँ
महीने के महीने जीता हूँ
होश में चुड़ैल ज़िंदगी
भयानक छलावे करती है
पर एक पाव शराब से
बहुत-बहुत डरती है
पहली की पहली
ठेके के भीतर जाता है
महीने भर लुटा-पिटा मंगू
बाहर
मगन लाल आता है
पहली की पहली
मिठाई का दोना लिए
घर लौटता हूँ
हँसता हूँ हँसाता हूँ
बच्चे को बहलाता हूँ
देर गए रात् तक
पत्नी से बतियाता हूँ
हुजूर
एक पव्वा न पीने से
ऊबड़-ख़ाबड़ सड़क
समतल तो
हो नहीं जाएगी
न ही पंचर गाड़ी में
हवा भर जाएगी
अलबत्ता
मासिक मगन लाल
ज़रूर मर जाएगा
बच्चे से मासिक पिता
पत्नि से मासिक पति
ज़रूर छिन जाएगा