भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बर्फ़ गिरती है / हेन्द्री स्पेशा
Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:06, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण
बर्फ़ गिरती है बर्फ़ बन कर
और मेरी अँगीठी से हियासिंथ की ख़ुशबू उठती है
बर्फ़ गिरती है रात बन कर
और मुझ में से झाँकती है उदासी
बर्फ़ गिरती है मेरे भीतर बर्फ़ बन कर
और मेरी घड़ियाँ गिरती हैं
मुस्तकबिल दे
कफ़न में
शब्दार्थ:
हियासिंथ: सुम्बुल
अनुवाद : विष्णु खरे