भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी / कुँअर बेचैन

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:07, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तन-मन-प्रान, मिटे सबके गुमान

एक जलते मकान के समान हुआ आदमी

छिन गये बान, गिरी हाथ से कमान

एक टूटती कृपान का बयान हुआ आदमी

भोर में थकान, फिर शोर में थकान

पोर-पोर में थकान पे थकान हुआ आदमी

दिन की उठान में था, उड़ता विमान

हर शाम किसी चोट का निशान हुआ आदमी।