भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेटी है ठुमरी उम्मीदों की टेक / अविनाश

Kavita Kosh से
Avinashonly (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:08, 12 फ़रवरी 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्रावणी के लिए

छोटी सी चादर रजाई सा भार
फाहे सी बेटी हवा पर सवार
मां की, बुआ की हथेली कहार
रे हैया रे हैया रे डोला रे डोला

चावल के चलते सुहागन है सूप
जाड़े की संगत में दुपहर की धूप
सरसों की मालिश में खिला खिला रूप
रे हैया रे हैया रे डोला रे डोला

छोटे-से घर में है बालकनी एक बेटी है ठुमरी उम्‍मीदों की टेक चादर को देती है पांवों से फेंक

रे हैया रे हैया रे डोला रे डोला

उजाले का दिन अंधेरे की रात उनींदे में हंस हंस के करती है बात फूल सी फुहारे सी नन्‍हीं सौगात
रे हैया रे हैया रे डोला रे डोला