भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सर्द ठंडी रातों में / रंजना भाटिया
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 12 फ़रवरी 2009 का अवतरण
सर्द ठंडी रातों में
नग्न अँधेरा ,
एक भिखारी-सा...
यूँ ही इधर-उधर डोलता है
तलाशता है
एक गर्माहट
कभी बुझते दीये की रौशनी में
कभी काँपते पेड़ों के पत्तों में
कभी खोजता है कोई सहारा
टूटे हुए खंडहरों में,
या फिर टूटे दिलों में
कुछ सुगबुगा के अपनी
ज़िंदगी गुज़ार देता है
यह अँधेरा कितना बेबस-सा
यूँ थरथराते ठंड के साए में
बन के याचक-सा
वस्त्रहीन
रातें काट लेता है !!