Last modified on 15 फ़रवरी 2009, at 00:21

नीली चमकीली तान / लीलाधर मंडलोई

गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:21, 15 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ है ज़रूर कि हवा अबेरती है
किसी ढिग लगे घर की यह टटकी गन्ध

निकली हो कोई लड़कोरी कुँआ पूजने शायद
किलका हो कहीं नवजात शिशु कजरौटा
अगुवाई की बेरा हो जैसे फूलचौक पर किसी स्त्री की

घिनौची में फूटती है हरी-हरी दूब
आँखें खोल रही हैं भीत पर पीपल की फुनगियाँ

कहीं भीतर कोमल जड़ों के उत्स पर
टहलती लोरी की उनींदी टेर

कुछ है ज़रूर कि समय डूबा है हर कहीं हाहाकार में जब
किसी बच्चे की दस्तक है यह आसमान पर कि
उठती है मधुरला की नीली चमकीली तान


सन्दर्भ :

मध्ररला= बुन्देलखण्ड में गाए जाने वाले सोहर का प्रकार। ’मधुरला’ मंगलकामना का बुन्देली गीत है।