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तितलियाँ / रघुवंश मणि
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पंख फड़फड़ाती उड़ती हैं तितलियाँ
रोककर अपने पर एकाएक
हो जाती हैं आँखों से ओझल
इन्हें पकड़ना कोई कठिन नहीं
अगर ये फूलों पर बैठी हों
मेरे कोट पर आकर बैठ जाती है
मटमैली सफ़ेद या चमकीली तितली
भूल से या शायद आश्वस्त भाव से
घर नहीं होते हैं तितलियों के,
वे फूलों पर ही सो जाती हैं
छत्ते नहीं बनाती हैं शहद के
खुली वादियों में अक्सर
रंग बिखेरती हैं तितलियाँ
वातावरण को ख़ुशनुमा बनातीं।