भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परतों का अन्तर्विरोध / हीरालाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:43, 16 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हीरालाल |संग्रह= }} <Poem> नदी जो ऊपर से एक दिखती है, क...)
नदी जो ऊपर से एक दिखती है,
कई परतों से बनी है।
नदी, जो ऊपर-ऊपर जोरों से बहती है
नीचे जाकर हो गई है शान्त।
चट कर गए हैं उसकी ऊर्जा को
उसकी अपनी ही परतों के अन्तर्विरोध।
ऊपर से जवान दीखने वाली
यह पहाड़ की लड़की
अन्दर से बूढ़ी हो रही है।