भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सांझ / रवीन्द्रनाथ त्यागी
Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:15, 17 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ त्यागी |संग्रह= }} <poem> धीरे-धीरे सांझ ...)
धीरे-धीरे सांझ हो गई
अब बेला के फूल हिल गए
नभ में जमा भाव वह नए,
जगभर को मृदु स्वप्न दे गई!
ग्राम डगर पर खिसका अंचल
स्वर्ण विहग ले सोता पीपल
उठ जल से वह रेखा चंचल
अभी-अभी नभ में खो गई!
उधर सो गया धीरे, सविता
नभ में फैला कोमल कविता
जो बिखरे बादल की संध्या
नीरव पग धर मुझे दे गई!