भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ नहीं हो सकता / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:18, 18 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=जो देख रहा हूँ / सुदर्शन ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब कुछ नहीं हो सकता
गाड़ी खराब है
वह उठता है ड्राइवर एकाएक
नेता भी कहते हैं
हालत खराब है
कुछ नहीं हो सकता
गाड़ी और देश एक हो गये हैं।

आशावान रहते हैं संत
हालांकि बात निराशा की करते हैं
खोजते हैं समाज सुधारक
चंदे की रसीद काटती बार
अब बहुत सी संस्थाएं
ढोती हैं चिंता सूखे की
बाढ़ की भूकंप की
लोग आशंकित हैं कि
हम जो पुराने कपड़ों का दान दे रहे हैं
सरकार की तमाम योजनाओं की तरह
पहुंचेगा भी सही आदमी तक।

बदले हैं भ्रष्टाचार के अर्थ
सिकुड़े हैं ईमान के मायने
चोर कहता है
जब रात खिड़की से घुसा
मालिक जेवर हाथ में लिये खड़ा थाओ।

डॉक्टर कहते हैं
रोग क्रॉनिक हो गया है
कुछ नहीं हो सकता इसका ईलाज।