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माँ हाटकेश्वरी-दो / अवतार एनगिल

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माँ हाटकेश्वरी_
कभी तो फुहार बनकर
सेबों की घाटी में
रिम-झिम बरसती है
तो कभी शिव के डमरू
औ शिलाजीती निगाड़ों पर
टप-टप बजती है
चन्द्रताल में स्नान कर
खुबानी अलूचों के
महकीले गीत सुनते हुए
दिप-दिप सजती
मतस्य कन्याओं को
मछुओं के धारदार जालों में
खिंचते हुए देखती
रंभासुर राजा की
सुन्दरी दैत्य बालओं के
अभिसारी कटाक्षों को
घाटी की नाटी में
बुनती
कमसिन कन्याओं को
स्वर्ण के कर्णफूलों से सजाने के लिए
बहती है____रात-दिन....दिन रात
हाटकी नदी के
कच्चे किनारों पर
'"हाटक"' बिखेरती:
माँ हाटकेश्वरी: माँ हाटकेश्वरी



हाटक= पब्बर नदी का पौराणिक नाम
हाटकी:= सोना