Last modified on 19 फ़रवरी 2009, at 17:52

पत्नी / कुँअर बेचैन

Dr.bhawna (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:52, 19 फ़रवरी 2009 का अवतरण


तू मेरे घर में बहनेवाली एक नदी

मैं नाव

जिसे रहना हर दिन

बाहर के रेगिस्तानों में।

नन्हीं बेसुध लहरों को तू

अपने आँचल में पाल रही

उनको तट तक लाने को ही

तू अपना नीर उछाल रही

तू हर मौसम को सहनेवाली एक नदी

मैं एक देह

जो खड़ी रही आँधी, वर्षा, तूफ़ानों में।

इन गर्म दिनों के मौसम में

कितनी कृश कितनी क्षीण हुई।

उजली कपास-सा चेहरा भी

हो गया कि जैसे जली रुई

तू धूप-आग में रहनेवाली एक नदी

मैं काठ

सूखना है जिसको

इन धूल भरे दालानों में।

तेरी लहरों पर बहने को ही

मुझे बनाया कर्मिक ने

पर तेरे-मेरे बीच रेख-

खींची रोटी की, मालिक ने

तू चंद्र-बिंदु के गहनेवाली एक नदी

मैं सम्मोहन

जो टूट गया

बिखरा फिर नई थकानों में।