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हम भीग रहे हैं / तुलसी रमण

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भीग रहे रोम-रोम
फिसलती पगडंडी पर
ठहर गये हम
तने के नीचे एक सटकर

देह की ऊष्मा में
सिर से पैर तक
सरक रही बूँद-बूँद

हमारे संग भीग रहे :
         गहरे लाल पत्तों सजीं
         सुँदरी लताओं के
         सतत आलिंगन में
         पगलाए प्रेमी
         डूबे हुए धुँध में
                   देवदार

पत्ता-पत्ता झर रहा
देह का ताप
                            सितंबर 1990