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अनंत दीप / तुलसी रमण
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हिमाचल पिघल के
उतर आया
सागर से मिलने आतुर
पृथ्वी के वक्ष से
बह रही है गंगा
यहाँ कैसी संध्या !
घुल रहे हैं जलधार में
आरती के मंत्र
ठहर गया हवा में
अंतस का संगीत
उतर आया
एक उत्सव घाट पर
गंगा से आ लिपटी
आकाश गंगा
पृथ्वी की गोद में
जल की लहरों पर
उर में अग्नि लिए
प्रकंपमान जगतप्राण में
महाशून्य में प्रकाशमान
अनंतदीप
वह रहा
असंख्य दीपों संग
आत्मीय
निर्विकल्प
अनंत में बढ़ रहा
मेरे हाथो से
अभी-अभी छूटा
अंत दीप
हरिद्वार 11सितंबर्.1987
अपने बाबा (पिता) की अस्थियाँ प्रवाहित करने के बाद