भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समाधि-दो / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:34, 20 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसी रमण |संग्रह=पृथ्वी की आँच / तुलसी रमण }} <Poem> अ...)
अनंत आकाश में
घनी उड़ रहीं
मूक मधुमक्खियाँ
मस्तिष्क के भीतर
गहरे सन्नाटे में
जैसे घूम आता
ब्रह्माण्ड
मौन हैं पहाड़
अपने में भर लेने को
फाहा
-फाहा स्पर्श