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सम्बोधन-दो / तुलसी रमण
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तुम आओ
........
यहाँ बैठो............
जहाँ मेरी
हथेली पड़ती है
और देखो
अपने हाथों में लेकर
मेरी हथेली पर बसी
दुनिया
अक्तूबर 1987