कत्ल का इश्तहार / केशव
मुझे और नहीं ढोना है अब
ख़ामोशी का ताबूत
जिसमें बंद हैं सच के कंकाल
और आवाजों की बुझी मशालें
मेरी पीठ पर लाद जिसे
छोड़ देते हैं मुझे वे
अनिश्चय की भुरभुरी चट्टान पर
उनके ईश्वर के
हर गर्दन नापने के लिए बढ़े हाथ
मेरे हाथों में कोई धर्मग्रन्थ थमा
उकसाते हैं मुझे
झूठ को सच और सच को झूठ की
कब्र में दफना देने के लिए
और करते हैं इन्तजार
कब मेरी आवाज में
पैदा हो दरार
और मेरे गले में फूल मालाएं पहना
जुलूस की शक्ल में मुझे घुमायें
गली-गली, बाज़ार-बाज़ार
मेरे अंदर खमीरे आटे की तरह
लगातार फूल रही है एक गाली
मेरे हाथों में है संकल्प का चाकू
जिससे काट सकता हूँ
उनकी हर साजिश को
उनका जेहन उघाड़कर
उसमें भरे मवाद को
नंगा कर सकता हूं सरेआम
न मुझे तलाश है
उनकी खोखली आवाज में किसी क्रांति की
जिसके नाम पर वे
इकट्ठा करते हैं चन्दा
आती है उनके पसीने से तब
ताजे खून की गंध
तिलचट्टों की कतार के साथ
मैं चल जरूर रहा हूँ
लेकिन अपने पैरों से
मेरी आँखों के सामने
फैला है जो धुआँ
जानता हूँ
जिन चिमनियों से होकर आ रहा है
उनके नीचे सुलग रहा है
गीली आवाजों का जंगल
इसका अर्थ समझाने के लिए वे
ले जाते हैं मुझे
गैस चेम्बरों में बार-बार
फिर भी आग के लिए मेरी तड़प देख
तिलमिलाकर बदलते हैं पैंतरा
और स्कूल के रास्ते से
कर लेते हैं मेरे बच्चे का अपहरण
फासला तय करने के लिए
पहन लूँ क्या उनकी नाप के जूते
या फिर प्रेम से निकलकर बच्चे का चित्र
लगा दूँ वहाँ
किसी के कत्ल का इश्तहार.