भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक सूनी यात्रा (कविता) / केशव
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:03, 21 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=भविष्य के नाम पर / केशव }} <Poem> मैं तो सि...)
मैं तो सिर्फ यहां के बारे में जानता हूँ
जहाँ होता नहीं
किसी को किसी से प्यार
केवल चलते हैं पाँव
एक दीवार से दूसरी दीवार तक
मैं कहीं और की बात क्यों करूँ
यहां जो होता है भ्रम का विस्तार
वृक्श के नीचे लेटे-लेटे
फल टपकने का रहता है इंतजार
दिन गुज़र जाते हैं
अकेली चिड़िया की तरह सुरंग से
पहियों के नीचे
दब जाता है आकाश
लोग पीते रहते हैं चाय
बदलते रहते लिबास
दफ्तरनुमा घरों में
काले साँप की तरह
रेंगता रहता है अकेलापन
और धनुष की डोरी की मानिंद
खिंचे रहते हैं लोग
मैं दबे पाँव
निकल पड़ता हूँ
एक सूनी यात्रा पर
जहाँ दिन चढ़ते ही
गहराने लगता है झींगुरों का शोर
कागजों के ढेर पर बैठा
ऊँघता है देश.