भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खाली करने वाले हाथ / केशव
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:31, 21 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=भविष्य के नाम पर / केशव }} <Poem> मैंने स्...)
मैंने स्वतंत्र कर दिया है खुद को
कि पत्थरों पर भी लिख दूँ 'प्यार'
असंगतियों को लिये चलूँ साथ
दुनिया भटक रही
जिस सच की तलाश में
नहीं अलग मेरा सच उससे
पर मैं भटक रहा हूँ
अपनी तरह से
दुनिया में रहकर
लड़ाई दुनिया से
नहीं भरती मुझमें
घृणा, क्रोध
बल्कि ले आती है समझ के
उस मोड़ पर
अपना न होते हुए भी जहाँ से
अपना दिखाई देता है सब
और खाली करते हैं जो हाथ मुझे
वही भरते भी हैं.