भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो शख्स अब मेरा पुराना मकान छोड़े/ मासूम शायर

Kavita Kosh से
Masoomshayer (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:29, 21 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: वो शख्स अब मेरा पुराना मकान छोडे मेरे दिल से निकले मेरी ये जान छोड...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो शख्स अब मेरा पुराना मकान छोडे मेरे दिल से निकले मेरी ये जान छोडे

दुश्मनो को मौका तब ही कहीं मिलेगा मेरी ये जान पहले मेरा मेहरबान छोडे

मेरी हर एक शह पर क़ब्ज़ा सा किया है मेरी ज़मीन छोडे ना वो आसमान छोडे

ख़ौफ़ भी दिया मुझे ज़िंदगी भी बक्शी सब तीर आजू बाजू मेरे तान तान छोडे

वो प्यार अब नही है कैसे बताऊं इसको आज तक भी दिल ना वो दास्तान छोडे

झूठी सी चार बातें कहने की आरज़ू है मेरी रूह से कहो तुम मेरी ज़ुबान छोडे

जीते जी ये चाहा हां उसकी सुन सकूँ मैं जो भी मुझे जला दे मेरे ये कान छोडे

छोटी सी जान दे दी की वो सुकूं पाए उसके मन को कैसे मन परेशान छोडे

दुनिया जहां तू जिस शख्स के लिए है तेरे लिए भी कैसे दुनिया जहान छोडे

दिल में तेरी यादें आँखों में ख्वाब तेरे मासूम जा रहा है तो कहाँ समान छोडे