वो शख्स अब मेरा पुराना मकान छोड़े/ मासूम शायर
वो शख्स अब मेरा पुराना मकान छोडे मेरे दिल से निकले मेरी ये जान छोडे
दुश्मनो को मौका तब ही कहीं मिलेगा मेरी ये जान पहले मेरा मेहरबान छोडे
मेरी हर एक शह पर क़ब्ज़ा सा किया है मेरी ज़मीन छोडे ना वो आसमान छोडे
ख़ौफ़ भी दिया मुझे ज़िंदगी भी बक्शी सब तीर आजू बाजू मेरे तान तान छोडे
वो प्यार अब नही है कैसे बताऊं इसको आज तक भी दिल ना वो दास्तान छोडे
झूठी सी चार बातें कहने की आरज़ू है मेरी रूह से कहो तुम मेरी ज़ुबान छोडे
जीते जी ये चाहा हां उसकी सुन सकूँ मैं जो भी मुझे जला दे मेरे ये कान छोडे
छोटी सी जान दे दी की वो सुकूं पाए उसके मन को कैसे मन परेशान छोडे
दुनिया जहां तू जिस शख्स के लिए है तेरे लिए भी कैसे दुनिया जहान छोडे
दिल में तेरी यादें आँखों में ख्वाब तेरे मासूम जा रहा है तो कहाँ समान छोडे