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तुमने फूँके हैं आशियाँ कितने / बुनियाद हुसैन ज़हीन

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तुमने फूँके हैं आशियाँ कितने
हमको मालूम है कहाँ कितने

बागबानो से पूछते रहिए
और जलने है गुलिस्ताँ कितने

तेरे दिल पर हसीन यादों के
छोड़ जाऊँगा मैं निशां कितने

ए परिंदे उड़ान भर के देख
तेरे आगे हैं आस्मां कितने

ऐसे पल जिनमें तेरा साथ न था
मुझ पे गिरे हैं वो गिरां कितने

गिरां − भारी

एक ताबिर के न होने से
हो गये ख्वाब रायगां कितने

रायगां − बेकार

ये ज़माने पे खुल न जाए कहीं
राज़ है अपने दरमियाँ कितने

ढूँढ़ने से कहीं खुशी न मिली
गम मिले है यहाँ वहाँ कितने

ज़िंदगी में कदम कदम पे ज़हीन
देने पड़ते हैं इम्तिहां कितने