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प्रभुवर वर दो / सुदर्शन वशिष्ठ

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प्रभुवर वर दो!
अनाचार और व्यभिचार से मैं बच पाऊँ
        यह न माँगू
इन में कैसे रच बस जाऊँ ऐसा वर दो
        प्रभुवर वर दो!

यीशू नामक राम कृष्ण हो, यह न जानूँ
इतना जानूँ करुणानिधि हो, दया निधान हो
तब ही माँगूँ प्रभुवर वर दो!
देश की खातिर लुट जाऊँ, मैं यह न माँगूँ
देश में कैसे लूट मचाऊं, ऐसा वर दो
       प्रभुवर वर दो!

बाढ़ बन मैं खेत को खाऊँ
सेवक बन कर घात लगाऊँ
ऊंचे स्टेजों पर चिल्लाऊँ
रसीद छाप चँदा धन पाऊँ
अबलाओं के घर बसाऊँ
भेदभाव और सम्प्रदाय की आग लगाऊँ
फिर खुद ही पानी छिड़काऊँ
चोरी कर के चोर-चोर कर शोर मचाऊँ
गला घोंट हत्यारे ढूँढूँ
मोहरे पर मैं मोहरा बदलूँ

चेहरे पर मैं चेहरा बदलूँ
       प्रभुवर वर दो!

गरीब बनूँ मैं, दीन बनूँ मैं, हीन बनूँ मैं
मैं कहता हूँ निर्धनता की रेखा से भी
       नीचे-नीचे जिऊँ मैं

राम करे अपँग हो जाऊँ
फिर चयनित परिवार कहलाऊँ
नई तोड़ पर घर बसाऊँ
आंगन मैं एक भैंस बंधाऊं
घर में बैठा-बैठा खाऊँ
लोन सब्सिडी भरपेट पचाऊँ
फिर बोलूँ छप्पर खाली है
लोन नहीं अब बरबादी है
माफ करो अब कर्ज हमारे
हम सेवक तुम बाप हमारे
और बड़ा कोई लोन दिलाओ
दास जोनों के काज सँवारो।