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जितने हिस्सों में जब चाहा उसने हमको बाँटा है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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जितने हिस्सों में जब चाहा उसने हमको बाँटा है
उसको है मालूम हमारी सोचों में सन्नाटा है

हम जब-जब अपने-अपने घर से सड़कों पर उतरे हैं
तब-तब ही उनके पाले पागल कुत्तों ने काटा है

तुम उससे ना जाने क्या उम्मीद लगाए बैठे हो
जिस दिमाग़ में चौबीस घंटे सिर्फ़ लाभ और घाटा है

टीसों के इस कोलाहल में क्या मंज़िल और क्या रस्ता
लँगड़ाती सोचों में यारो गहरा कोई काँटा है

ऊँची ऐड़ी के जूतों से उसके बाहर आते ही
हमको ये मालूम हुआ वो आदमक़द तो नाटा है

लातें - घूँसे खा कर भी वो इसीलिए चुप बैठा है
उसके हाथों घुटनों में जकड़े थैले में आटा है