भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आते आते मेरा नाम / वसीम बरेलवी
Kavita Kosh से
आते आते मेरा नाम सा रह गया
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया
वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये
और मैं था कि सच बोलता रह गया
आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
ये दिया कैसे जलता रह गया