भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झनकारो झनकारो झनकारो / कुमाँऊनी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:07, 24 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=कुमाँऊनी }} <poem> झनकारो झन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

झनकारो झनकारो झनकारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो - २
तुम हो बृज की सुन्दर गोरी, मैं मथुरा को मतवारो
चुंदरि चादर सभी रंगे हैं, फागुन ऐसे रखवारो।
गौरी प्यारो…
सब सखिया मिल खेल रहे हैं, दिलवर को दिल है न्यारो
गौरी प्यारो…
अब के फागुन अर्ज करत हूँ, दिल कर दे मतवारो
गौरी प्यारो…
भृज मण्डल सब धूम मची है, खेलत सखिया सब मारो
लपटी झपटी वो बैंया मरोरे, मारे मोहन पिचकारी
गौरी प्यारो…
घूंघट खोल गुलाल मलत है, बंज करे वो बंजारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो -२